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Kathleen Blechynden, Public domain, via Wikimedia Commons
यह अधिनियम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के मामलों को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था। इसने पहली बार कंपनी के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों को स्वीकार किया। इसने भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी।
इसने बंगाल के गवर्नर को ‘ बंगाल के गर्वनर- जनरल’ के रूप में नामित किया और उनकी सहायता के लिए चार सदस्यों की एक कार्यकारी परिषद बनाई।
पहले, बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर एक-दूसरे से स्वतंत्र थे, लेकिन इस कानून ने उन्हें बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया।
इसमें निर्धारित किया गया कि कलकत्ता (1774) में एक सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किया जाएगा, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अतिरिक्त न्यायाधीश होंगे।
इस कानून ने कंपनी के कर्मचारियों को किसी भी प्रकार के निजी व्यवसाय से जुड़ने अथवा स्थानीय निवासियों से किसी भी प्रकार की भेंट अथवा रिश्वत लेने को अवैध घोषित कर दिया।
इसने कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (कंपनी की शासी निकाय) को भारत में अपने राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों पर रिपोर्ट करने के लिए बाध्य करके कंपनी पर ब्रिटिश सरकार के अधिकार को सशक्त बनाया।