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इस अधिनियम ने पहली बार भारत में कंपनी के क्षेत्रों को ‘भारत में ब्रिटिश आधिपत्य’ के रूप में स्वीकार किया। ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के मामलों और उसके प्रशासन पर सर्वोच्च नियंत्रण दिया गया। इससे निदेशक मंडल के माध्यम से दोहरी सरकार की स्थापना हुई, जिन्हें कंपनी के वाणिज्यिक कार्यों की निगरानी करनी होती थी और नियंत्रण बोर्ड को राजनीतिक मामलों की निगरानी करनी होती थी।
इस अधिनियम ने कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों की सीमा निश्चित की।
इसने निदेशक मंडल को वाणिज्यिक मामलों पर नियंत्रण का अधिकार दिया तथा राजनीतिक कार्यों की देखरेख के लिए नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई। फलस्वरूप दोहरी शासन प्रणाली का विकास हुआ। इसने नियंत्रण बोर्ड को सभी नागरिक और सैन्य सरकारी कार्यों के साथ-साथ भारत में सभी ब्रिटिश संपत्तियों से राजस्व की निगरानी और प्रबंधन करने का अधिकार दिया।