1892 के अधिनियम की विशेषताएं

इस अधिनियम के कारण केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई। विधान परिषद के सदस्यों की शक्तियां बढ़ा दी गईं। अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में कुछ गैर-आधिकारिक सीटों को भरने के लिए चुनाव के उपयोग का सीमित और अप्रत्यक्ष प्रावधान किया गया।

हालाँकि चुनाव शब्द का प्रयोग नहीं किया गया।

  • इसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अधिक संख्या में गैर-आधिकारिक सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया, लेकिन उनमें आधिकारिक बहुमत में बदलाव नहीं किया गया।
  • इसने विधान परिषदों को अधिक कार्य सौंपे और उन्हें बजट पर चर्चा करने एवं कार्यपालिका को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया।
  • इसमें (क) प्रांतीय विधान परिषदों और बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स की सिफारिश पर वायसराय द्वारा केंद्रीय विधान परिषद के कुछ गैर-आधिकारिक सदस्यों के नामांकन, और (ख) राज्यपालों द्वारा जिला बोर्डों, नगर पालिकाओं, विश्वविद्यालयों, व्यापार संघों, जमींदारों और चैंबर की सिफारिश पर प्रांतीय विधान परिषदों के नामांकन का प्रावधान किया गया।
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