अधिनियम में लोक सेवा आयोग गठित करने का प्रावधान किया गया। इसलिए, सिविल सेवकों की भर्ती के लिए 1926 में केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई।
इस अधिनियम ने कार्यक्षेत्र तथा केंद्रीय और प्रांतीय विषयों को अलग करके प्रांतों पर केंद्रीय नियंत्रण में ढील दी।
इसने प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया- हस्तांतरित और आरक्षित।
क. हस्तांतरित विषयों की शासन व्यवस्था विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से राज्यपाल द्वारा की जाती थी।
ख. दूसरी ओर, आरक्षित विषयों को विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी हुए बिना राज्यपाल और उसकी कार्यकारी परिषद द्वारा प्रशासित किया जाना था।
केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधानमंडलों को अपने-अपने विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया। इसके बावजूद, सरकार की संरचना केंद्रीकृत और एकात्मक बनी रही।
भारतीय विधान परिषद को द्विसदनीय विधायिका द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जिसमें एक उच्च सदन (राज्य परिषद) और एक निचला सदन (विधान सभा) शामिल थे। दोनों सदनों के अधिकांश सदस्यों को सीधे चुनाव कराने के उपरांत चुना जाता था।
इसके लिए आवश्यक था कि वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से तीन (कमांडर-इन-चीफ के अलावा) भारतीय हों।
अधिनियम ने सिक्खों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन और यूरोपीय लोगों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र प्रदान कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को बढ़ाया दिया।
अधिनियम ने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को फ्रेंचाइजी प्रदान की।
इसने लंदन में भारत के लिए उच्चायुक्त का एक नया कार्यालय बनाया और अब तक भारत के राज्य सचिव द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्यों को उसे हस्तांतरित कर दिया।