कंपनी नियम
1833 का चार्टर एक्ट

यह अधिनियम ब्रिटिश भारत में केंद्रीकरण की दिशा में अंतिम कदम था। इसने बंगाल के गवर्नर-जनरल के पद को भारत के गवर्नर-जनरल के पद तक बढ़ा दिया, जिससे उन्हें नागरिक और सैन्य मामलों से संबंधित सभी अधिकार मिल गए। ईस्ट इंडिया कंपनी एकमात्र प्रशासनिक निकाय बन गई। इस अधिनियम का उद्देश्य सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता स्थापित करना भी है।

  • इस अधिनियम ने बंगाल के गवर्नर-जनरल को भारत के गवर्नर-जनरल के पद तक बढ़ा दिया, जिससे उन्हें पूर्ण नागरिक और सैन्य अधिकार प्राप्त हुए।

  • पहली बार, इस कानून ने भारत में ब्रिटिश-नियंत्रित क्षेत्र पर को भारत सरकार को अधिकार दिए।

  • इसने बंबई और मद्रास के राज्यपालों की विधायी शक्तियां छीन लीं। संपूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य पर भारत के गवर्नर-जनरल को विशेष विधायी शक्तियाँ प्रदान की गईं।

  • इससे ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक गतिविधि रुक गई और यह पूरी तरह से एक प्रशासनिक निकाय बन गई।

  • इस अधिनियम का उद्देश्य सिविल सेवक चयन के लिए खुली प्रतिस्पर्धा की प्रणाली स्थापित करना था और कहा गया कि भारतीयों को कंपनी के तहत किसी भी स्थान, कार्यालय और रोजगार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। हालाँकि, निदेशक न्यायालय के विरोध करने पर इस प्रावधान को अस्वीकार कर दिया गया।

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