1336 - 1565 ई.पू.

विजयनगर साम्राज्य का लोक प्रशासन

विजयनगर साम्राज्य, जिसे करात साम्राज्य के रूप में भी जाना जाता है, की स्थापना 1336 में हरिहर प्रथम और बुक्का राय प्रथम भाइयों द्वारा की गई थी। दोनों भाई दिल्ली में मुहम्मद बिन तुगलक के बंदी थे और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया गया था। हालांकि, बाद में जब वे कम्पीली आए, तो अद्वैत के एक प्रतिष्ठित विद्वान विद्यारण्य (माधवाचार्य) के मार्गदर्शन में, दोनों फिर से हिंदू बन गए, अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर तुंगभद्रा नदी के दक्षिण तट पर विजयनगर (विजय का शहर) नामक नया शहर बसाया तथा दक्षिण भारत के बड़े हिस्से में शांति-व्यवस्था बहाल की। चूंकि वे संगम के पुत्र थे, इसलिए इनके द्वारा स्थापित वंश को को संगम राजवंश कहा जाता था। इस राजवंश के बाद सलूवा, तुलुवा और अरविदु राजवंशों ने विजयनगर को अपनी राजधानी बनाकर दक्षिण भारतीय और दक्कन के एक भाग पर शासन किया तथा दो शताब्दियों से अधिक समय तक इस्लामी आक्रमण से अपने साम्राज्य की रक्षा की।[1]

विजयनगर साम्राज्य अपने शासकों द्वारा विकसित सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रणाली के कारण दो शताब्दियों से अधिक समय तक अस्तित्व में रहा और इस दौरान आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई।[2] विजयनगर साम्राज्य का शासक प्रबुद्ध और परोपकारी था जो धर्मशास्त्रों के अनुसार शासन करता था। वह राज्य का मुखिया था और उसे पृथ्वी पर भगवान का प्रतिनिधि माना जाता था। राजा नागरिक, सैन्य और न्यायिक मामलों में सर्वोच्च अधिकारी था। यद्यपि, राजा की सहायता और मार्गदर्शन मंत्रीपरिषद करती थी। विजयनगर साम्राज्य अपनी प्रांतीय सरकार के लिए प्रसिद्ध है, जिसे प्रशासन की नयनकर प्रणाली कहा जाता है, इस प्रणाली में राजा वेतन के बदले अधिकारियों को जमीन देते थे, अर्थात अधिकारी जमीन से ही अपना तथा अपनी सेना का भरण-पोषण करते थे। साम्राज्य प्रांतों (प्रांत), जिलों (नादुस), और गाँव (मेलाग्राम और ग्राम) में विभाजित था। गाँवों का प्रशासन स्वायत्त था। अराविडु वंश के कृष्णदेव राय (1471-1529) विजयनगर साम्राज्य के शासकों में सबसे योग्य शासक थे और भारत के सभी मध्ययुगीन शासकों में उनका स्थान सबसे ऊपर था। कुशल प्रशासन के लिए प्रसिद्ध, वह अपनी प्रजा के कल्याण के प्रति अत्यंत सचेत थे। उनके शासनकाल में कला, वास्तुकला और धर्म का अत्यधिक विकास हुआ।[3]

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An approximate visualisation, sourced from:M. H. Rama Sharma, The History of the Vijayanagara Empire, Beginning and Expansion (1308-1569), Popular Prakashan, Bombay, 1956, p. 144.