322 ई.पू.-185 ई.पू.

मौर्य साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित होने वाला सबसे प्राचीन तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साम्राज्य था। चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई.पू. में इस विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी तथा यह वक्षु घाटी से लेकर कावेरी डेल्टा तक फैला था तथा अपने शासकों द्वारा सुगठित यह केंद्रीयकृत शासन था। चन्द्रगुप्त न सिर्फ एक महान योद्धा था, बल्कि वह एक योग्य शासक भी था। उसने अपने इस विशाल साम्राज्य में योग्य और कुशल प्रशासनिक शासन – व्यवस्था स्थापित की। उसके शासन प्रबंध में प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ कौटिल्य (जिन्हें चाणक्य भी कहा जाता है), जो चन्द्रगुप्त के गुरु भी थे, ने सहायता की। चन्द्रगुप्त की राजनीतिक प्रणाली मुख्यतः कौटिल्य के अर्थशास्त्र[1] में वर्णित आदर्शों पर आधारित थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से हमें मौर्य साम्राज्य की शासन प्रणाली की जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त, अशोक के राजादेश दूसरा महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो मौर्य सम्राटों द्वारा निर्मित केंद्रीयकृत शासन प्रणाली पर प्रकाश डालता है। साथ ही, हमारे पास मौर्य शासकों के बारे में शिलालेख संबंधी स्रोत, साहित्यिक स्रोत, विदेशी वृत्तांत और पुरातात्त्विक उत्खनन संबंधी सामग्री भी उपलब्ध है। मौर्य साम्राज्य परवर्ती शासकों के लिए केंद्रीयकृत सरकार और शासन प्रणाली की एक ऐसी विरासत छोड़ गया है जो आज भी मौजूद है। उदाहरण के लिए सारनाथ स्थित मौर्य सम्राट अशोक के सिंह-स्तम्भ को भारतीय गणराज्य के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है।

ऐसा प्रतीत होता है कि अर्थशास्त्र जो मौर्य काल में शासन और प्रशासन का आधार बना, नागरिकों की मुख्यतः सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर केन्द्रित है। प्रजा के प्रति राजा के कर्तव्य के बारे में पुरानी परम्पराओं का अनुसरण करने के बावजूद, इसमें महाकाव्यों तथा ब्राह्मणों में पाये जानेवाले पुरोहितवादी आदर्शों की अवहेलना की गई है। मौर्य राजाओं का मुख्य उद्देश्य था समाज में सुख शांति लाने के उपाय ढूँढना, और उनका विश्वास था कि उनकी राजनीतिक शक्ति सामाजिक अस्तित्व के लिए अनिवार्य आधारशिला का कार्य करेगी। अर्थशास्त्र में यह वर्णन है कि एक सर्वमान्य वरिष्ठ के अभाव में अराजकता छा जाएगी और इसमें सभी सरकारों की आधारशिला के लिए एक निग्रह प्राधिकारी की हिमायत की गई है। लोभ और कुप्रवृत्ति से ग्रसित समाज कमजोर पर अत्याचार करने का प्रयास करता है, जिसका शासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अर्थशास्त्र में यह तर्क दिया गया है कि इस प्रकार के टकराव और हिंसा की स्थिति को दूर करने के लिए राजोचित शक्ति नितांत आवश्यक है जिसे तभी प्राप्त किया जा सकता है जब राजा को अनन्य निग्रह शक्ति प्राप्त हो।[2] चूंकि मगध का राजवंश बिलकुल अयोग्य था और उत्तर-पश्चिम भाग में यूनानियों के आक्रमण हो रहे थे, चौथी सदी ई. पू. में भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत अशांत थी, अतः अर्थशास्त्र के रचनाकर चाणक्य ने सोचा कि राजतंत्रीय शासन के आधार पर एक केंद्रीयकृत साम्राज्य स्थापित करना अनिवार्य है। एक विशाल सेना का निर्माण किया गया। इस तथ्य का वर्णन यूनानी लेखकों ने भी किया है और उन्होंने मगध, आंध्र, कलिंग तथा पाण्ड्य साम्राज्य की विशाल सेना का उल्लेख किया है।[3]

मौर्य साम्राज्य की 322 ई.पू. में स्थापना के बाद इसने अपने शासन वाले विशाल क्षेत्र में एक व्यापक शासन-प्रणाली विकसित की। मौर्य साम्राज्य राजतंत्रीय तथा केंद्रीयकृत था। शासन में सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रि-परिषद और अधिकारीवर्ग थे। राज्य की शक्ति अभी भी अपविस्तृत थी क्योंकि मौर्य साम्राज्य अनेक प्रान्तों में बंटा हुआ था तथा इन प्रान्तों को फिर जिलों में विभाजित किया गया था और ग्रामीण तथा शहरी दोनों प्रकार के शासनों के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे।[4]

राधाकृष्ण पिल्लई ने मौर्य साम्राज्य पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डाला

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An approximate visualisation, sourced from Maurya Empire. (2023, April 11). In Wikipedia. https://en.wikipedia.org/wiki/Maurya_Empire