500 647 ई.

वर्धन राजवंश का लोक प्रशासन

वर्धन वंश, जिसे पुष्यभूति वंश के रूप में भी जाना जाता है, ने 6 ठी और 7 वीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारत में शासन किया था । इस राजवंश ने अपने अंतिम शासक हर्षवर्धन (590 - 647 ईस्वी) के अधीन अपने चरम उत्‍कर्ष को प्राप्‍त कर लिया था । हर्ष के साम्राज्य में उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भारत के अधिकांश हिस्से शामिल थे, जो पूर्व में कामरूप (असम) और दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। परिधीय(परिफेरल) राज्यों ने भी उनकी संप्रभुता को स्वीकार किया हुआ था । इस राजवंश ने शुरू में स्थानवेश्वर (थानेसर जिला, हरियाणा) से शासन किया, लेकिन हर्ष ने बाद में कान्यकुब्ज (उत्तर प्रदेश में आधुनिक कन्नौज) को अपनी राजधानी बना लिया था, जहां से उन्होंने अपनी मृत्यु तक शासन किया। वर्धन राजवंश के प्रशासन के बारे में जानकारी के दो प्रमुख साहित्यिक स्रोत उपलब्‍ध है, प्रथम हर्षचरित है, जो बाणभट्ट द्वारा लिखित हर्षवर्धन की जीवनी है, बाणभट्ट उनके दरबारी कवि थे, और दूसरा स्रोत 7 वीं शताब्दी में भारत का दौरा करने वाले चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग का यात्रा वृत्तांत है। हर्ष के शिलालेखों में विभिन्न करों और अधिकारियों की श्रेणियो का उल्‍लेख मिलता हैं।[1] बाणभट्ट के संस्कृत उपन्यास कादम्बरी में भी वर्धन वंश के प्रशासनिक इतिहास पर प्रकाश डाला गया है।[2]

हर्ष एक प्रभावी प्रशासक थे, और साम्राज्‍य के मामलों में सक्रिय रूप से रुचि लेते थे और अपनी आंखों से चीजों को देखने के लिए अक्सर अपने राज्य का दौरा करते थे । उन्होंने अपने साम्राज्य को बड़े पैमाने पर गुप्त शासकों की तरह शासित किया था, लेकिन साम्राज्य की प्रशासनिक संरचना अधिक सामंती और विकेन्द्रीकृत थी। चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग हमें बताता है कि हर्ष के राजस्व को चार भागों में बांटा गया था। जिसके एक हिस्‍से को राजा को उनके व्यक्तिगत उपयोग के लिए आवंटित किया गया था, दूसरा हिस्‍सा विद्वानों को दिया गया था, तीसरा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों को उनके वेतन के रूप में दिया जाता था, और अंतिम हिस्‍से को धार्मिक उद्देश्यों के लिए अलग रखा जाता था। हालांकि, यहां ध्यान देने योग्‍य बात यह है कि हर्ष के शासन काल से, अधिकारियों को भूमि पुरस्‍कार और भुगतान के तौर पर दी जाने की सामंती प्रथा शुरू हुई थी । इस प्रकार, हर्ष साम्राज्य के अधिकांश मंत्रियों और अधिकारियों को उनके वेतन के रूप में भूमि का आवंटन किया गया था।[3] जबकि सामंत अपने स्वयं की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था द्वारा अपने क्षेत्र पर शासन करते थे, वहीं दूसरी ओर, राजा द्वारा प्रत्‍यक्ष रूप से शासित क्षेत्र को सुशासन के लिए प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया था। कुल मिलाकर, हर्ष के अधीन वर्धन वंश का साम्राज्य प्राचीन भारत में सबसे अच्छी तरह से शासित किए जाने वाले क्षेत्रों में से एक था।

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An approximate visualisation, sourced from:Radhakumud Mookerji, Harsha, Oxford University Press, 1926.